पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए सियासी हालात ठीक नहीं दिखाई दे रहे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है, जब पाकिस्तान में किसी सरकार और सेना के खिलाफ राइट और लेफ्ट पार्टियां एकजुट हो गई हैं। इन 11 पार्टियों ने पिछले महीने मिलकर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) का गठन किया था।
इसमें पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की दक्षिण पंथी पार्टी पीएमएल-एन और बिलावल भुट्टो-जरदारी की वामपंथी पार्टी पीपीपी भी शामिल हैं। खास बात यह है कि इस मोर्चे का नेतृत्व दक्षिण पंथी दल जमीयत उलेमा-ए- इस्लाम के प्रमुख फजलूर रहमान कर रहे हैं। ये पार्टियां इमरान सरकार से इस्तीफे की मांग रही हैं।
साथ ही कह रही हैं कि देश के राजनीतिक और सरकारी मामलों में सेना की दखल बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मोर्चे ने सरकार के खिलाफ तीन चरणों में आंदोलन की योजना बनाई है। इसके तहत शुक्रवार को गुजरांवाला में पहली रैली की गई।
यह साल खत्म होते-होते सरकार भी खत्म हो जाएगी
मोर्चे के नेता फजलूर रहमान ने फोन पर बातचीत में दावा किया कि इमरान सरकार के दिन लद चुके हैं। यह साल खत्म होते-होते सरकार भी खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि जनता का साथ मिल रहा है। वहीं, एक तरफ सरकार ने गुरुवार को पीडीएम को रैली करने की इजाजत तो दी।
दूसरी ओर सूत्रों का कहना है कि पुलिस ने रैली से पहले लाहौर समेत पंजाब में विपक्ष के करीब 450 नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया। कई लोगों को नजरबंद कर दिया। इन लोगों के खिलाफ खुफिया विभाग ने रिपोर्ट दी थी।
रैली फ्लॉप करने के लिए कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया
पंजाब में इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की सत्ता है। इमरान इसे प्रगतिशील पार्टी बताते रहे हैं। अपने समर्थकों पर कार्रवाई के बाद पीएमएल-एन की प्रवक्ता मरियम औरंगजेब ने कहा, ‘इमरान पागल हो गए हैं। उन्होंने हमारी रैली फ्लॉप करने के लिए कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया।'
विपक्ष का मानना है कि खाने-पीने की चीजों, पेट्रोलियम पदार्थों के महंगे होने और कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण जनता इमरान सरकार से नाराज है। यही सरकार के पतन का कारण बनेगा। हालांकि, विशेषज्ञ इससे अलग राय रखते हैं।
फायदा विपक्षी पार्टियों को अपनी सीटों के विस्तार में मिल सकता है
राजनीतिक विश्लेषक अहमद कुरैशी का कहना है कि फिलहाल विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन से इमरान सरकार को खतरा नहीं है। इससे सरकार नहीं गिरेगी। हालांकि, सत्ता हासिल करने के बाद इमरान सरकार पर लोग जितना विश्वास कर रहे थे, उतना अब नहीं कर रहे। इसका फायदा विपक्षी पार्टियों को अपनी सीटों के विस्तार में मिल सकता है। सेना के रहते इमरान सरकार पर आंच आना मुश्किल है।
इमरान सरकार पर आरोप लगता रहा है कि वह सेना की कठपुतली बनी हुई है। इसलिए अब सेना भी सीधे तौर पर विपक्ष के खिलाफ कुछ नहीं बोल रही है। जबकि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सेना पर निशाना साधते हुए कहा है कि वे इमरान के खिलाफ नहीं हैं। वे उनके खिलाफ हैं, जिन्होंने इमरान को सत्ता तक पहुंचाया है। इमरान सरकार इलेक्टेड नहीं, सिलेक्टेड सरकार है। विपक्ष की प्राथामिकता इस सिलेक्टेड सरकार को हटाना है।
सरकार के खिलाफ विपक्ष की रैलियां
विपक्षी मोर्चा सरकार के खिलाफ 18 अक्टूबर को कराची, 25 अक्टूबर को क्वेटा, 22 नवंबर को पेशावर, 30 नवंबर को मुल्तान और 13 दिसंबर को लाहौर में रैलियां करेगा।
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